लौट आ ओ धार
टूट मत ओ साँझ के पत्थर हृदय पर
(मैं समय की एक लंबी आह मौन लंबी आह)
लौट आ, ओ फूल की पंखड़ी फिर फूल में लग जा
चूमता है धूल का फूल कोई, हाय।
(1959)
हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ
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